एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिक्खा था सो भी मिट गया
एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिक्खा था सो भी मिट गया
ज़ाहिरन काग़ज़ तिरे ख़त का गलत-बर-दार है
जी जले ज़ौक़-ए-फ़ना की ना-तमामी पर न क्यूँ
हम नहीं जलते नफ़स हर चंद आतिश-बार है
आग से पानी में बुझते वक़्त उठती है सदा
हर कोई दरमांदगी में नाले से नाचार है
है वही बद-मस्ती-ए-हर-ज़र्रा का ख़ुद 'उज़्र-ख़्वाह
जिस के जल्वे से ज़मीं ता आसमाँ सरशार है
मुझ से मत कह तू हमें कहता था अपनी ज़िंदगी
ज़िंदगी से भी मिरा जी इन दिनों बे-ज़ार है
आँख की तस्वीर सर-नामे पे खींची है कि ता
तुझ पे खुल जावे कि इस को हसरत-ए-दीदार है
बिस कि हैरत से ज़ि-पा उफ़्तादा-ए-ज़िन्हार है
नाख़ुन-ए-अंगुश्त-ए-बुत ख़ाल-ए-लब-ए-बीमार है
ज़ुल्फ़ से शब दरमियाँ दादन नहीं मुमकिन दरेग़
वर्ना सद-महशर ब-रेहन-ए-साफ़ी-ए-रुख़्सार है
दर-ख़याल आबाद सौदा-ए-सर-ए-मिज़्गान-ए-दोस्त
सद-रग-ए-जाँ जादा-आसा वक़्फ़-ए-नश्तर-ज़ार है
बस-कि वीरानी से कुफ़्र-ओ-दीं हुए ज़ेर-ओ-ज़बर
गर्द-ए-सहरा-ए-हरम ता-कूचा-ए-ज़ुन्नार है
ऐ सर-ए-शोरीदा नाज़-ए-'इश्क़ व पास-ए-आबरू
यक तरफ़ सौदा व यकसू मिन्नत-ए-दस्तार है
वस्ल में दिल इंतिज़ार-ए-तुर्फ़ा रखता है मगर
फ़ित्ना ताराज-ए-तमन्ना के लिए दरकार है
ख़ानमाँ-हा पाएमाल-ए-शोख़ी-ए-दा'वे 'असद'
साया-ए-दीवार सैलाब-ए-दर-ओ-दीवार है
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