फ़साना इश्क़ का वो इस तरह दोहराए जाते हैं
फ़साना इश्क़ का वो इस तरह दोहराए जाते हैं
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
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फ़साना इश्क़ का वो इस तरह दोहराए जाते हैं
ज़बाँ ख़ामोश है नज़रों से कुछ समझाए जाते हैं
किसी ने बे-रुख़ी समझा कोई लुत्फ़-ओ-करम समझा
कुछ इस अंदाज़ से महफ़िल में वो शरमाए जाते हैं
कहीं ऐसा न हो या-रब मिरी तौबा पे बन आए
ये बादल आज घिर घिर कर मुझे बहकाए जाते हैं
मुझे अब दिल की धड़कन से यही महसूस होता है
तमन्नाओं की दुनिया में वो जैसे आए जाते हैं
क़फ़स अच्छा है ऐसे आशियाँ से ऐ चमन वालो
जहाँ ज़ुल्म-ओ-सितम हर वक़्त हम पर ढाए जाते हैं
क़दम चूमेगी उन के कामयाबी एक दिन बढ़ कर
सफ़ीना अपना जो तूफ़ान से टकराए जाते हैं
वुफ़ूर-ए-शौक़ में ऐ 'दर्द' मेरा अब ये आलम है
जिधर नज़रें उठाता हूँ वहीं वो पाए जाते हैं
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