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ग़लत क्या है सभी हम को अगर नाकाम कहते हैं

नज़र द्विवेदी

ग़लत क्या है सभी हम को अगर नाकाम कहते हैं

नज़र द्विवेदी

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    ग़लत क्या है सभी हम को अगर नाकाम कहते हैं

    समझ पाए उसे कब हम जिसे इल्हाम कहते हैं

    लिए बाज़ार में हस्ती खड़े हैं आज अपनी हम

    लगा लो जितना दिल चाहे हमारा दाम कहते हैं

    अगर परचम उठाओगे बग़ावत का तो तय मानो

    नज़ारा जो दिखेगा उस को क़त्ल-ए-'आम कहते हैं

    गुनाहों में रहे हों हम भी शामिल क्या ज़रूरी है

    मगर मुंसिफ़ हमारा ही लिखेगा नाम कहते हैं

    हमेशा ही बुलंदी पर नहीं रहता कोई टिक कर

    ढलेगी दोपहर भी और होगी शाम कहते हैं

    दुपट्टा राम-नामी ओढ़ने से कुछ नहीं होगा

    अगर शबरी बनोगे तो मिलेंगे राम कहते हैं

    'नज़र' आधे अधूरे मन से कुछ हासिल नहीं होता

    ग़लत आग़ाज़ को भी हम ग़लत अंजाम कहते हैं

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