ग़ज़ल के सब मसाइल हम वली दकनी से पूछेंगे
ग़ज़ल के सब मसाइल हम वली दकनी से पूछेंगे
हैं इस में कितने पेच-ओ-ख़म वली दकनी से पूछेंगे
ग़ज़ल की इब्तिदा किस से है कब से है कहाँ से है
ये बातें हम तो कम से कम वली दकनी से पूछेंगे
ग़ज़ल को जाम-ओ-मीना ज़ुल्फ़ से आज़ाद करने में
लगाएँ और कितना दम वली दकनी से पूछेंगे
दिलों के ज़ख़्म पर ख़ालिस ग़ज़ल मरहम सी काम आए
कहाँ मिलता है ये मरहम वली दकनी से पूछेंगे
ग़ज़ल क्यों ख़ुश नहीं होती ख़ुशी चाहे किसी की हो
उसे दरकार क्यों है ग़म वली दकनी से पूछेंगे
ग़ज़ल की कामयाबी में है किरदार-ए-ज़माना क्या
ज़माना क्यों हुआ बरहम वली दकनी से पूछेंगे
जो कहते हैं कि शाइ'र मग़्फ़िरत का हक़ नहीं रखते
उन्हीं के सामने हम-दम वली दकनी से पूछेंगे
अदब भी बट गया मज़हब के मस्लक की तरह 'राशिद'
यहाँ भी कितने हैं परचम वली दकनी से पूछेंगे
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