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घिरे हैं चारों तरफ़ बेकसी के बादल फिर

रफ़ीआ शबनम आबिदी

घिरे हैं चारों तरफ़ बेकसी के बादल फिर

रफ़ीआ शबनम आबिदी

MORE BYरफ़ीआ शबनम आबिदी

    घिरे हैं चारों तरफ़ बेकसी के बादल फिर

    सुलग रहा है सितारों भरा इक आँचल फिर

    बस एक बार उन आँखों को उस ने चूमा था

    हमेशा नम ही रहा आँसुओं से काजल फिर

    ये कैसी आग है जो पोर पोर रौशन है

    ये किस ने रख दी मिरी उँगलियों पे मशअ'ल फिर

    फिर अब की बार लहू-रंग बारिशें बरसें

    किसी ने काट दिए हैं सरों के जंगल फिर

    रगों में तपती हुई ख़ुशबुएँ मचलने लगीं

    मला बदन पे नए मौसमों ने संदल फिर

    कहीं तो रेत से चश्मा निकल ही आएगा

    भटक रहा है वो काँधों पे ले के छागल फिर

    फिर उस अकेली भरी दोपहर ने झुलसा है

    कि याद आने लगा सुब्ह से वो पागल फिर

    RECITATIONS

    अज़रा नक़वी

    अज़रा नक़वी,

    अज़रा नक़वी

    घिरे हैं चारों तरफ़ बेकसी के बादल फिर अज़रा नक़वी

    स्रोत :
    • पुस्तक : Mausam bhiigii aa.nkho.n kaa (पृष्ठ 69)
    • रचनाकार : Rafia Shabnam Abidi
    • प्रकाशन : Hassan Publications, Mumbai (1985)
    • संस्करण : 1985

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