गुल-बदन गुल-पैरहन रूह-ए-चमन तुम ही तो हो
गुल-बदन गुल-पैरहन रूह-ए-चमन तुम ही तो हो
जान-ए-मन ग़ुंचा-दहन शीरीं-सुख़न तुम ही तो हो
गुलशन-ए-हस्ती की रानाई तुम्हारे दम से है
नर्गिस-ओ-नसरीँ गुलाब-ओ-यासमन तुम ही तो हो
मेरी इज़्ज़त मेरी ज़िल्लत सब तुम्हारे हाथ है
मैं बरहना जिस्म मेरा पैरहन तुम ही तो हो
जिस को पाने के लिए अहल-ए-ख़िरद तरसा किए
मेरा वो सरमाया वो दीवाना-पन तुम ही तो हो
कोई समझे या न समझे मैं समझता हूँ ज़रूर
ज़िंदगी तुम ही तो हो दार-ओ-रसन तुम ही तो हो
सारी दुनिया की बहारें जिस के चेहरे पर निसार
जिस पे क़ुर्बां दो-जहाँ का बाँकपन तुम ही तो हो
मैं तुम्हारे इश्क़ में काफ़िर से मोमिन बन गया
मेरी नज़रों में हिदायत की किरन तुम ही तो हो
कर दिया जिस ने मुझे अह्द-ए-वफ़ा से आश्ना
जिस ने बख़्शी प्यार की मीठी चुभन तुम ही तो हो
रात की तारीकियों को जिस ने बख़्शी रौशनी
चाँद तारों की वो दिलकश अंजुमन तुम ही तो हो
भूल जाता हूँ मैं जिस को देख कर हर ग़म 'शफ़ीअ''
मेरे अरमानों का वो ज़र्रीं गगन तुम ही तो हो
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