गुल मिलेंगे यहाँ पर हर इक रंग के आप आएँ मिरे गुल्सिताँ की तरफ़
गुल मिलेंगे यहाँ पर हर इक रंग के आप आएँ मिरे गुल्सिताँ की तरफ़
अब्दुल समद आसी
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गुल मिलेंगे यहाँ पर हर इक रंग के आप आएँ मिरे गुल्सिताँ की तरफ़
बू-ए-उल्फ़त इसी की बहारों में हैं लोग जाएँ तो जाएँ ख़िज़ाँ की तरफ़
ये मिरी अंजुमन है यहाँ कुछ नहीं जुज़ हक़ीक़त यहाँ पर बयाँ कुछ नहीं
आओ समझो मिरे क़ल्ब का मुद्दआ सिर्फ़ जाओ न मेरी ज़बाँ की तरफ़
सर झुकाने से इंकार कब है मुझे बहर-ए-मस्जूद पास-ए-अदब है मुझे
सज्दा-ए-शुक्र भी कुफ़्र हो जाएगा दिल जो माइल है हुस्न-ए-बुताँ की तरफ़
अक़्ल से मावरा है मक़ाम-ए-जुनूँ सब ही अहल-ए-ख़िरद हैं यहाँ सर-निगूँ
चलते चलते यहाँ कारवाँ रुक गया मंज़िलें ख़ुद बढ़ीं कारवाँ की तरफ़
जब ज़बाँ खोलिए सोच कर बोलिए अपने हर लफ़्ज़ को अक़्ल पर तोलिए
तीर 'आसी' कमाँ से जो छुट कर गया फिर वो आता नहीं है कमाँ की तरफ़
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