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हदीस-ए-दिलबराँ है और मैं हूँ

जयकृष्ण चौधरी हबीब

हदीस-ए-दिलबराँ है और मैं हूँ

जयकृष्ण चौधरी हबीब

MORE BYजयकृष्ण चौधरी हबीब

    हदीस-ए-दिलबराँ है और मैं हूँ

    जहाँ-अंदर-जहाँ है और मैं हूँ

    मुदावा-ए-ग़म-ए-फ़ुर्क़त नहीं कुछ

    बस उन की दास्ताँ है और मैं हूँ

    हमदम है कोई हम-नवाँ है

    दिल अपना राज़दाँ है और मैं हूँ

    भरी महफ़िल में भी बैठा हूँ तन्हा

    मिरा दर्द-ए-निहाँ है और मैं हूँ

    नहीं दर्द-आश्ना जिस से कहूँ कुछ

    मिरे मुँह में ज़बाँ है और मैं हूँ

    बहार आई चमन में आई होगी

    यहाँ दौर-ए-ख़िज़ाँ है और मैं हूँ

    नहीं बाक़ी वो नग़्मा और तराना

    बस इक हू का समाँ है और मैं हूँ

    वो साक़ी वो हम-मशरब अपने

    जुमूद-ए-मय-कशाँ है और मैं हूँ

    कभी इस दिल की ज़द में था ज़माना

    अब इक उतरी कमाँ है और मैं हूँ

    नहीं मोहलत कि दम भर मुड़ के देखूँ

    मिरी उम्र-ए-रवाँ है और मैं हूँ

    ख़ुद अपना अपने हैं शब-ओ-रोज़

    रज़ा-ए-दीगराँ है और मैं हूँ

    हुआ बेज़ार नाक़ूस-ए-अज़ाँ से

    फ़रेब-ए-ईन-ओ-आँ है और मैं हूँ

    कभी का जल चुका गो आशियाना

    ख़याल-ए-आशियाँ है और मैं हूँ

    'हबीब' अब ज़िंदगी की शाम आई

    ग़म-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ है और मैं हूँ

    स्रोत :
    • पुस्तक : نغمۂ زندگی (पृष्ठ 19)
    • रचनाकार : جے کرشن چودھری حبیب
    • प्रकाशन : جے کرشن چودھری حبیب

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