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हम बिखर जाएँगे नग़्मों-भरे ख़्वाबों की तरह

प्रेम वारबर्टनी

हम बिखर जाएँगे नग़्मों-भरे ख़्वाबों की तरह

प्रेम वारबर्टनी

MORE BYप्रेम वारबर्टनी

    हम बिखर जाएँगे नग़्मों-भरे ख़्वाबों की तरह

    मुतरिबा! छेड़ कभी हम को रबाबों की तरह

    एक पर्दे में हैं दर-पर्दा बहुत से पर्दे

    तेरी यादें हैं पुर-असरार हिजाबों की तरह

    ज़र्फ़ की बात है काँटों की ख़लिश दिल में लिए

    लोग मिलते हैं तर-ओ-ताज़ा गुलाबों की तरह

    जिन के सीनों में हैं महफ़ूज़ मोहब्बत के ख़ुतूत

    हम हैं कुछ ऐसी दिल-आवेज़ किताबों की तरह

    दिल था वो टूटा हुआ ताज-महल था क्या था

    चाँदनी ढूँड रही है जिसे ख़्वाबों की तरह

    प्यास की बूँद जो छलके तो समुंदर बन जाए

    हर नफ़स ख़्वाब दिखाता है सराबों की तरह

    'प्रेम' शाएर तो शहंशाह हुआ करते हैं!

    तुम मगर फिरते हो क्यूँ ख़ाना-ख़राबों की तरह

    स्रोत :
    • पुस्तक : Tahreek Silver Jubilee Number (पृष्ठ 416)
    • रचनाकार : Gopal Mittal, Makhmoor Saeedi, Prem Gopal Mittal
    • प्रकाशन : Monthly Tahreek, 9, Ansari Market, Daryaganj, New Delhi-110002 (July, Aug., Sep. Oct. 1978,Volume No. 26,Issue No. 4,5,6,7,)
    • संस्करण : July, Aug., Sep. Oct. 1978,Volume No. 26,Issue No. 4,5,6,7,

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