हमें लगता है दिन सब लोग जिस को रात कहते हैं
हमें लगता है दिन सब लोग जिस को रात कहते हैं
मक़्सूद आलम ख़ाँ आलम बरेलवी
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हमें लगता है दिन सब लोग जिस को रात कहते हैं
कोई माने न माने हम तो अपनी बात कहते हैं
कहाँ जल्वा नहीं उस का कहाँ चर्चा नहीं उस का
वो बस इक नूर है बंदे ख़ुदा की ज़ात कहते हैं
जहाँ नाकाम हो के अपनी रह जाती हैं तदबीरें
उन्हें बिगड़ी हुई तक़दीर के हालात कहते हैं
जमाल-ए-यार पर मिटता है कोई हुस्न-ए-फ़ितरत पर
इसी ज़ौक़-ए-अमल को निस्बत-ए-औक़ात कहते हैं
मिला क्या क्या न उन से हम को ऐ 'आलम' मोहब्बत में
सितम ढाया करें वो हम तो एहसानात कहते हैं
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