हर इक दिल में ख़ार-ए-अलम देखते हैं
रोचक तथ्य
(February 9, 1962) (Ghalib's Birth date) (Organized by Taraqqi-e-anjuman-e-Urdu, Delhi)
हर इक दिल में ख़ार-ए-अलम देखते हैं
ख़ुशी जिस को कहते हैं कम देखते हैं
जो दिल ही में हुस्न-ए-सनम देखते हैं
कहीं जानिब-ए-जाम-ए-जम देखते हैं
किसे किस क़दर पाएदारी है हासिल
तिरा क़ौल अपनी क़सम देखते हैं
यक़ीन-ओ-अमल साथ रहते हैं जिन के
वो मंज़िल को ज़ेर-ए-क़दम देखते हैं
भर आता है दिल ख़ून रोती हैं आँखें
किसी को जो हम चश्म-नम देखते हैं
जहाँ दर्द-मंदों से ख़ाली नहीं है
ये हर अश्क में मौज-ए-यम देखते हैं
ये हुस्न-ओ-मोहब्बत का रिश्ता अजब है
हम इन को हमेशा बहम देखते हैं
ये माना सकत देखने की नहीं है
तुझे फिर भी तेरी क़सम देखते हैं
तिरी पर्दा-दारी है मल्हूज़-ए-ख़ातिर
तुझे दिल की आँखों से हम देखते हैं
रुबाब-ए-नफ़स पर हमेशा नज़र है
हम इस साज़ का ज़ेर-ओ-बम देखते हैं
सलीक़ा अदब का सिखाती है पीरी
जो झुकते न थे उन को ख़म देखते हैं
जो आईना आता है उन के मुक़ाबिल
वो आईना हैरत से हम देखते हैं
इधर जज़्ब-ए-उल्फ़त उधर कम निगाही
अजब आलम-ए-शौक़-ओ-रम देखते हैं
वहीं डालते हैं हरम की बिना हम
जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं
किसी के कोई बे-सबब काम आए
ये दस्तूर दुनिया में कम देखते हैं
ये हस्ती भी इक रुख़ उसी का है 'तालिब'
ये क्यूँ आप सू-ए-अदम देखते हैं
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