हर किसी को है ख़याल-ए-आशियाँ कुछ इन दिनों
हर किसी को है ख़याल-ए-आशियाँ कुछ इन दिनों
काश होती सब को फ़िक्र-ए-गुल्सिताँ कुछ इन दिनों
क्यों न हो बरहम मिज़ाज-ए-पासबाँ कुछ इन दिनों
बदली बदली है हवा-ए-गुलसिताँ कुछ इन दिनों
इस नवाज़िश के पस-ए-पर्दा कोई साज़िश न हो
हो रहे हैं वो जो हम पे मेहरबाँ कुछ इन दिनों
इस ख़मोशी और गोयाई का आलम क्या कहूँ
हर नज़र है इक मुकम्मल दास्ताँ कुछ इन दिनों
ख़ैर हो दामान-ए-हस्ती की इलाही ख़ैर हो
है जुनूँ-पर्वर बहार-ए-गुल्सिताँ कुछ इन दिनों
बे-ख़ुदी में भी हूँ मैं राज़-ए-ख़ुदी से आश्ना
ऐन-बेदारी है ये ख़्वाब-ए-गिराँ कुछ इन दिनों
दे रही हैं हर नफ़स को दावत-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र
ये मिज़ाज-ए-दहर की तब्दीलियाँ कुछ इन दिनों
देखना इक दिन उलट दूँगा बिसात-ए-यास-ओ-ग़म
कह रहा है यह दिल-ए-गर्म-ओ-जवाँ कुछ इन दिनों
होशियार ऐ रहरवान-ए-राह-ए-हस्ती होशियार
राहज़न बनते हैं मीर-ए-कारवाँ कुछ इन दिनों
देखना ये है कि दिल इक्सीर हो जाता है कब
हर नफ़स तो है मिरा आतश-बजाँ कुछ इन दिनों
अहल-ए-दिल अहल-ए-नज़र अहल-ए-वफ़ा की ख़ैर हो
महव-ए-आराइश है फिर हुस्न-ए-बुताँ कुछ इन दिनों
ले उड़ूँगा देखना दाम-ओ-क़फ़स को एक दिन
आ रहे हैं याद अहल-ए-गुल्सिताँ कुछ इन दिनों
ये मिरी सहरा-नवर्दी रंग लाएगी ज़रूर
कह रही है देख काँटों की ज़बाँ कुछ इन दिनों
अब न वो शौक़-ए-उबूदिय्यत न ज़ौक़-ए-बंदगी
हर जबीं है बे-नियाज़-ए-आस्ताँ कुछ इन दिनों
बात क्या है खोया खोया सा नज़र आता है क्यों
'फ़ैज़ी'-ए-रंगीं-नवा जादू-बयाँ कुछ इन दिनों
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