हर तरफ़ रंगीं फ़ज़ा है चाँद भी पुर-नूर है
हर तरफ़ रंगीं फ़ज़ा है चाँद भी पुर-नूर है
तेरी आमद की ख़बर से दिल बहुत मसरूर है
तेरे मयख़ाने का साक़ी ये 'अजब दस्तूर है
कोई तिश्ना-लब है महफ़िल में कोई मख़मूर है
'ऐब क्या पिन्हाँ हैं इस में ये किसी को क्या ख़बर
अपने अपने हुस्न पर हर आदमी मग़रूर है
कितना सच्चा है ये अहल-ए-दानिश-ओ-बीनिश का क़ौल
आदमी आज़ाद हो कर भी बड़ा मजबूर है
'आम इंसाँ उस से वाक़िफ़ ही नहीं तो इस से क्या
हल्क़ा-ए-शे'र-ओ-अदब में वो बहुत मशहूर है
दिल को कर लो पहले इख़्लास-ओ-मुरव्वत-आश्ना
फिर तुम्हारा फ़ैसला हर शख़्स को मंज़ूर है
हर घड़ी रहता है 'नाज़िर' तेरे दर के आस-पास
कौन कहता है मिरा घर तेरे घर से दूर है
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