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हवा-ए-इश्क़ में शामिल हवस की लू ही रही

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

हवा-ए-इश्क़ में शामिल हवस की लू ही रही

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

MORE BYसिद्दीक़ अफ़ग़ानी

    हवा-ए-इश्क़ में शामिल हवस की लू ही रही

    बढ़ा भी रब्त तो बे-रब्त गुफ़्तुगू ही रही

    आई हाथ में तितली-गुदाज़ ख़ुशबू की

    गुल-ए-बदन की महक मेरे चार-सू ही रही

    वो दश्त दश्त सी आँखें चमन चमन चेहरा

    सराब-ए-ख़ौफ़ की इक लहर रू-ब-रू ही रही

    तुलूअ' उफ़ुक़ पे है अब तक वही सितारा-ए-बाद

    मैं भूल जाऊँ उसे दिल में आरज़ू ही रही

    हज़ार बार लुटा हुस्न-ए-बर्ग-ओ-बार मगर

    रग-ए-शजर में रवाँ मौज-ए-रंग-ओ-बू ही रही

    हरी रुतों की हुई आसमान से बारिश

    मगर ज़मीन-ए-तमन्ना लहू ही रही

    सफ़र की धूप ने तन-मन जला दिया मेरा

    मदार-ए-दश्त में साए की जुस्तुजू ही रही

    हुआ दूर मिरे दिल से ज़ंग-ए-महरूमी

    तमाम रात रवाँ चश्म-ए-आब-जू ही रही

    अबद अबद से मिरी ख़ुद से जंग जारी है

    ये ख़ैर-ओ-शर की बला मुझ से दू-बदू ही रही

    उबलता रहता है सीने में कर्ब का लावा

    लिबास-ए-ख़ाक को भी हाजत-ए-रफ़ू ही रही

    तवाफ़-ए-शहर-ए-निगाराँ मिरा ही जुर्म नहीं

    ज़न-ए-हवा भी तो आवारा कू-ब-कू ही रही

    स्रोत :
    • पुस्तक : Auraaq (पृष्ठ 47)
    • रचनाकार : Vazeer Agha
    • प्रकाशन : Office auraq. chouck Urdu Bazar, Lahore (Nov. Dec. 1974)
    • संस्करण : Nov. Dec. 1974

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