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हवा ज़माने की साक़ी बदल तो सकती है

सलाम मछली शहरी

हवा ज़माने की साक़ी बदल तो सकती है

सलाम मछली शहरी

MORE BYसलाम मछली शहरी

    हवा ज़माने की साक़ी बदल तो सकती है

    हयात साग़र-ए-रंगीं में ढल तो सकती है

    बस इक लतीफ़ तबस्सुम बस इक हसीन नज़र

    मरीज़-ए-दिल की ये हालत सँभल तो सकती है

    जहाँ से छोड़ रहे हो मुझे अँधेरे में

    वहीं से राह-ए-मोहब्बत निकल तो सकती है

    फिर अपने गुंचा-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर का क्या होगा

    नसीम-ए-सुब्ह मिरी सम्त चल तो सकती है

    तिरी निगाह-ए-करम की क़सम है अब भी मुझे

    यही यक़ीन कि दुनिया बदल तो सकती है

    'सलाम' जाम-ओ-सुबू की ये शाइरी मालूम

    वगर्ना अपनी तबीअ'त बहल तो सकती है

    स्रोत :
    • पुस्तक : Noquush (पृष्ठ B-365 E-379)
    • प्रकाशन : Nuqoosh Press Lahore (May June 1954)
    • संस्करण : May June 1954

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