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हिज्र के सब ग़म सहेंगे अजनबी

मुबारक लोन

हिज्र के सब ग़म सहेंगे अजनबी

मुबारक लोन

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    हिज्र के सब ग़म सहेंगे अजनबी

    हम बिछड़ कर फिर मिलेंगे अजनबी

    हम करेंगे याँ मोहब्बत बे-शुमार

    शर्त ये पर हम रहेंगे अजनबी

    आश्ना हों लाख लेकिन फिर भी हम

    एक दूजे को कहेंगे अजनबी

    'अह्द लेते हैं मगर इस बात पर

    ज़ाहिरी हम ख़ुश रहेंगे अजनबी

    फिर उठाएँगे सज्दे से ये सर

    इस जनम में गर मिलेंगे अजनबी

    रास्ते जब अपनी मंज़िल है जुदा

    चल कि वापस घर चलेंगे अजनबी

    समझे हैं जो ज़िंदगी को बा-वफ़ा

    इक इक दिन सब मरेंगे अजनबी

    मत 'मुबारक' से रखो ये दोस्ती

    चार बातें सब करेंगे अजनबी

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