होती है हसीनों से जो जफ़ा 'उश्शाक़ गवारा करते हैं
होती है हसीनों से जो जफ़ा 'उश्शाक़ गवारा करते हैं
ये शौक़ से क़ुर्बां होते हैं वो नाज़ से मारा करते हैं
हाथों में नहीं शमशीर मगर ये क़त्ल-ए-‘आलम कैसा है
जाती हैं हज़ारों की जानें वो ख़ुद को सँवारा करते हैं
सीखा है गुलिस्ताँ में हम ने काँटों से सबक़ ख़ुद्दारी का
फूलों की तरह शबनम के लिए दामन न पसारा करते हैं
दाराई मुबारक हो तुम को हम मस्त हैं अपनी गुदड़ी में
क़तरे पे क़नाअ'त करते हैं दरिया से किनारा करते हैं
जब उन से ये पूछा जाता है वहशत है किसे इस महफ़िल में
वो एक अदा से मेरी तरफ़ आँखों से इशारा करते हैं
इस में भी ख़ुदा की हिकमत है दुनिया में नहीं जो हम-रंगी
कुछ लोग ब-सेह्हत जीते हैं कुछ दुख में गुज़ारा करते हैं
दौलत थी लगाव रखते थे है तर्क-ए-त'अल्लुक़ ग़ुर्बत में
जब दिल में बिठाते थे वो हमें अब दिल से उतारा करते हैं
इक दौर वो था सब मिल-जुल कर दुख-दर्द बटाया करते थे
इक दौर ये है हम आपस में परख़ाश गवारा करते हैं
दिन-रात तड़पता रहता हूँ है मेरी ख़बर उन को 'बरतर'
करने को वो पर्दा करते हैं छुप-छुप के नज़ारा करते हैं
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