हुए और बेकल दवा के असर से
हुए और बेकल दवा के असर से
करें ख़ाक उम्मीद हम चारा-गर से
कहीं अब्र-ए-रहमत लगातार बरसे
ग़ज़ब है कहीं बूँद को कोई तरसे
जबीं जो न झुकती थी दैर-ओ-हरम पर
वो उठती नहीं अब तिरे संग-ए-दर से
कई बार लब तक तिरा नाम आया
मगर सी लिए होंट दुनिया के डर से
तिरी याद फिर आज तड़पा रही है
टपकने लगे अश्क फिर चश्म-ए-तर से
ज़माने की कुछ हम को पर्वा नहीं है
मगर गिर न जाएँ तुम्हारी नज़र से
इलाही ये कैसी हवा चल पड़ी है
बशर ख़ौफ़ खाने लगा है बशर से
'बहार' आज कोई नया गुल खिलेगा
तबी'अत बहुत मुज़्तरिब है सहर से
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