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हुस्न-परवर शबाब क्या कहना

रौशन बनारसी

हुस्न-परवर शबाब क्या कहना

रौशन बनारसी

MORE BYरौशन बनारसी

    हुस्न-परवर शबाब क्या कहना

    गर्मी-ए-आफ़्ताब क्या कहना

    हुस्न और महव-ए-ख़्वाब क्या कहना

    फिर शब-ए-माहताब क्या कहना

    ये शबाब और ये सियाह नक़ाब

    अब्र में आफ़्ताब क्या कहना

    जैसे गुलशन को रख लिया दिल में

    नज़र-ए-इंतिख़ाब क्या कहना

    ये छलकते हुए शराब के जाम

    ये फ़ज़ा ये सहाब क्या कहना

    तू ने शह दी गुनाहगारों को

    रहमत-ए-बे-हिसाब क्या कहना

    सर भी ये ख़म है रू-ब-रू तेरे

    क़ामत-ए-ला-जवाब क्या कहना

    दो-जहाँ पर है इक़्तिदार तिरा

    दिल-ए-ख़ाना-ख़राब क्या कहना

    शम्अ' जैसे कँवल में हो रौशन

    आप का ये हिजाब क्या कहना

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