इंसान के लिए इस दुनिया में दुश्नाम से बचना मुश्किल है
इंसान के लिए इस दुनिया में दुश्नाम से बचना मुश्किल है
आनंद नारायण मुल्ला
MORE BYआनंद नारायण मुल्ला
इंसान के लिए इस दुनिया में दुश्नाम से बचना मुश्किल है
तक़्सीर से बचना मुमकिन है इल्ज़ाम से बचना मुश्किल है
ताइर के लिए दुश्वार नहीं सय्याद-ओ-क़फ़स से दूर रहे
लेकिन जो शक्ल-ए-नशेमन है उस दाम से बचना मुश्किल है
दामन को बचा भी लें शायद सहरा के नुकीले काँटों से
गुलशन के मगर गुल-हा-ए-शरर-अंदाम से बचना मुश्किल है
इस हादिसा-गाह-ए-हस्ती में टकराएँगे दो दिल कुछ भी करो
परियों के लिए वो लाख उड़ें गुलफ़ाम से बचना मुश्किल है
औहाम की तारीकी तो मिटा सकते हैं जला कर शम्अ-ए-ख़िरद
लेकिन ख़ुद अक़्ल के ज़ाईदा औहाम से बचना मुश्किल है
ऐ अर्ज़-ए-सहर के राह-रवो मंज़िल पे पहुँचने से पहले
हर क़ाफ़िला जिस ने लूट लिया उस शाम से बचना मुश्किल है
कुछ क़तरा-ए-मय ऊपर ऊपर फिर दर्द ही दर्द अंदर अंदर
आग़ाज़-ए-मोहब्बत ख़ूब मगर अंजाम से बचना मुश्किल है
इक ख़ूँ और गोश्त के इंसाँ का मा'बूद तिरी जन्नत की क़सम
हूरों से चुराना आँख आसाँ असनाम से बचना मुश्किल है
इंसान की है औलाद अगर वो 'मुल्ला' हो या और कोई
हंगाम-ए-जवानी फ़लसफ़ा-ए-'ख़य्याम' से बचना मुश्किल है
- पुस्तक : Kulliyat-e-Anand Narayan Mulla (पृष्ठ 382)
- रचनाकार : Khaliq Anjum
- प्रकाशन : National Council for Promotion of Urdu Language-NCPUL (2010)
- संस्करण : 2010
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