इस से पहले कि मिज़ाज अपना समुंदर बदले
इस से पहले कि मिज़ाज अपना समुंदर बदले
सुस्त रफ़्तार सफ़ीनों ने भी तेवर बदले
बन गई तेग़-ए-रवाँ मौज-ए-हवा-ए-हिज्राँ
शाम आई तो तिरी याद ने पैकर बदले
मौसम-ए-ताज़ा की आहट है मिरे कानों में
बर्ग शाख़ों ने परिंदों ने नए पर बदले
मेरी मिट्टी में है जज़्ब उस के बदन की ख़ुशबू
नींद का लुत्फ़ ही उड़ जाए जो बिस्तर बदले
सदफ़-ए-दिल में जो गौहर था वही है अब भी
यूँ तो दरियाओं ने हर रोज़ शनावर बदले
आज भी अक्स वही है जो बहुत पहले था
आइना-ख़ाने में आईने तो अक्सर बदले
नए अल्फ़ाज़-ओ-मआ'नी की तलब है 'साहिल'
ग़ैर-मुमकिन है मिज़ाज अपना सुख़नवर बदले
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