इतना हसीं भी चाहतों का सिलसिला न हो
इतना हसीं भी चाहतों का सिलसिला न हो
उल्फ़त हो तुझ से और तुझी से गिला न हो
हर दम उसी को सोचना हर दम उसी की याद
नश्शा मोहब्बतों का हो इतना नशा न हो
मेरी दु'आ है 'इश्क़ में चाहे जो हाल हो
लेकिन किसी का हाल मिरे हाल सा न हो
दिल जिस को चाहता है वो मिलता नहीं उसे
मिलता है दिल को वो ये जिसे चाहता न हो
तू मुझ से बात करने को तरसे तमाम 'उम्र
लेकिन कभी भी मुझ से तिरा राब्ता न हो
अब मुझ में ग़म उठाने की ताक़त नहीं रही
अब ज़िंदगी में कोई नया हादिसा न हो
फट जाए आसमाँ या ज़मीं राख हो मगर
अपना किसी का कोई किसी से जुदा न हो
ये भी 'अजीब ‘आलम-ए-बेचारगी है दोस्त
मंज़िल तो सामने हो मगर रास्ता न हो
जाने लगे जो आह मिरी 'अर्श की तरफ़
करना दु'आ वो आह मिरी बद-दु'आ न हो
मेरे तसव्वुरात में ख़्वाब-ओ-ख़याल में
वो हो न हो मगर कोई उस के सिवा न हो
फिर यूँ न हो कि बा'द में पछताएँ 'उम्र-भर
इन बद-गुमानियों में कोई फ़ैसला न हो
दिल में तो उस को अपने बसाना 'सहर' मगर
महबूब ही रहे वो तुम्हारा ख़ुदा न हो
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