जाँ कभी दिन से कभी रात से टकराती है
जाँ कभी दिन से कभी रात से टकराती है
एक कश्ती कई ख़तरात से टकराती है
दिल की मुडभेड़ तिरी याद से होती है कहीं
तीरगी नूर के ज़र्रात से टकराती है
एक हालत का कोई हाल नहीं है मुझ में
एक हालत है कि हालात से टकराती है
आह के चीथड़े आफ़ाक़ में उड़ते हैं कहीं
बे-कसी अर्ज़-ओ-समावात से टकराती है
राह पाती नहीं मंज़र से निकलने के लिए
हैरत अपने ही तिलिस्मात से टकराती है
काएनातें मिरी तशरीह-तलब हैं अब तक
इक मुसावात मुसावात से टकराती है
साँस होती नहीं हस्ती की नुमू में हाइल
रूह कब जिस्म के ख़लयात से टकराती है
ज़ब्त भी टूट न जाए कहीं पुश्ते की तरह
लहर ख़तरे के निशानात से टकराती है
गर्म रहती है तिरे रंज से सीने की फ़ज़ा
धूप शीशे के मकानात से टकराती है
सिलसिला आगे बढ़ाती है सबा मौज-ब-मौज
एक बात अगली किसी बात से टकराती है
ना-तवानाई तवानाई की ही शक्ल न हो
पीरी सर बाब-ए-मुनाजात से टकराती है
मुतसादिम है फ़रामोशी फ़रामोशी से
साँस शबनम के बुख़ारात से टकराती है
दिल है मा-क़ब्ल-ए-क़दीम आँख है मा-बा'द-ए-जदीद
हस्ती अपने ही तज़ादात से टकराती है
बे-ख़याली के किनारे पे कहीं बैठा हूँ
एक लहर आती है जज़्बात से टकराती है
उस की आमद भी तवारुद की तरह है 'शाहिद'
ख़बर औरों के ख़यालात से टकराती है
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