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जान लब पर आ गई फ़ुर्क़त में बस घबरा चुके

नवाब नजीर अल दोला

जान लब पर आ गई फ़ुर्क़त में बस घबरा चुके

नवाब नजीर अल दोला

MORE BYनवाब नजीर अल दोला

    जान लब पर गई फ़ुर्क़त में बस घबरा चुके

    अब वो आएँ या आएँ हम तो जी से जा चुके

    नाज़-ओ-अंदाज़-ओ-अदा को काम तुम फ़रमा चुके

    खोल कर बंद अब लिपट जाओ बहुत शर्मा चुके

    उस के आने की ठहरी सौ तरह ग़म खा चुके

    जान है जाए कहीं क़िस्सा मिटे झगड़ा चुके

    इंतिज़ार उन का अबस दिल है बस वो चुके

    ख़त जो भेजे थे जवाब-ए-साफ़ क़ासिद ला चुके

    खींच कर आहें मुनग़्ग़स उस को कर देता है तू

    यार को सद बार दिल हम मना कर ला चुके

    फाड़ कर कपड़े चले सहरा को हम वहशत-ज़दा

    निकहत-ए-गुल की तरह हम फिर के घर को चुके

    जब इक बोसा ही दो तुम और इक दुश्नाम दो

    दिल तुम्हें क्यूँकर मिले और इस की क़ीमत क्या चुके

    मुझ को ता'ना और मह-रूयों से मिलने का दिया

    मैं भी अब कुछ अर्ज़ कर लूँ आप तो फ़रमा चुके

    था हिजाब-ए-इश्क़ माने वर्ना शब को वस्ल में

    हाथ उन पाँव तलक सौ बार हम पहुँचा चुके

    दम उलटता है मिरा रुख़ से उलट दीजे नक़ाब

    बे-हिजाबी से तसल्ली कीजिए शर्मा चुके

    अपने इस दीवाना-पन से दिल बाज़ आया कभी

    क़ैद ज़िंदाँ में रखा ज़ंजीर तक पहना चुके

    जूँ क़फ़स सद-चाक दिल है हसरत-ए-परवाज़ से

    मुर्ग़-ए-गुल का शाख़-ए-गुल से हम क़फ़स लटका चुके

    वस्ल की शब है कफ़-ए-पा अपने सहलाने तो दो

    हिज्र में हम से कफ़-ए-अफ़्सोस तो मलवा चुके

    हाए उस गुल ने की इस दिल की चाहत पर नज़र

    ज़ख़्म खाए तन पे लाखों सैकड़ों गुल खा चुके

    ना-तवानी का बहाना गह किया गह मौत का

    उन के रह जाने को हम तो स्वाँग लाखों ला चुके

    उस ने पर रहने हम को वाँ दिया क्या कीजिए

    पाँव किस किस तरह उस के दर पे हम फैला चुके

    सैद-ए-मा'नी कोई 'दौला' अपने हाथ आता नहीं

    तौसन-ए-फ़िक्र अपना इस मैदाँ में हम दौड़ा चुके

    स्रोत:

    (Pg. 45)

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