जब समाअ'त ही न हो उस की तो है बेकार शरह
जब समाअ'त ही न हो उस की तो है बेकार शरह
क्या करूँ दिलबर मैं तुझ से अपना हाल-ए-ज़ार शरह
दम-ब-ख़ुद हूँ कुछ नहीं कहता हूँ रोब-ए-हुस्न से
चुप खड़ा हूँ हाल अपना करते हैं अग़्यार शरह
दिल में है उस रश्क-ए-यूसुफ़ की ख़रीदारी का शौक़
मेरे राज़-ए-इश्क़ की अब है सर-ए-बाज़ार शरह
नोश-ए-दारू-ए-शिफ़ा समझे जो मर्ग-ए-इश्क़ को
क्या मसीहा से करे दर्द अपना वो बीमार शरह
वस्फ़ चश्म-ए-यार का सुन कर मरीज़-ए-इश्क़ ने
क्यूँ किया था मैं ने पेश-ए-नर्गिस-ए-बीमार शरह
माह-ए-कनआँ शेफ़्ता उस पर हो भर कर आह-ए-सर्द
हुस्न-ए-जानाँ की करूँ जो गर्मी-ए-बाज़ार शरह
क्या ज़बाँ से वो कहे क्या हो दवा का ख़्वास्त-गार
दर्द-ए-दिल करती है तुझ से जिस की शक्ल-ए-ज़ार शरह
ना-तवानी से मुझे यारा-ए-गोयाई नहीं
हाल सोज़-ए-दिल करेगी आह-ए-आतिश-बार शरह
ग़ैर मुमकिन है तिरा अग़्यार से इजरा-ए-कार
हाजत-ए-दिल 'बर्क़' कर चल कर तू पेश-ए-यार शरह
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