जहाँ वालों से रूदाद-ए-जहाँ कुछ और कहती है
रोचक तथ्य
(21st March, 1952) (Birth date of Barq)
जहाँ वालों से रूदाद-ए-जहाँ कुछ और कहती है
पए-अहल-ए-नज़र ये दास्ताँ कुछ और कहती है
नए माहौल में उम्र-ए-रवाँ कुछ और कहती है
ब-अंदाज़-ए-दिगर ये दास्ताँ कुछ और कहती है
किसी के सामने पहले ज़बाँ कुछ और कहती थी
बदल कर अब ये अंदाज़-ए-बयाँ कुछ और कहती है
तिरी चश्म-ए-सुख़न-गो का कोई अंदाज़ तो देखे
निहाँ कुछ और कहती है अयाँ कुछ और कहती है
ख़मोशी मा'नी दारद कि दर-ए-गुफ़्तन नमी आयद
ख़मोशी से इबारत दास्ताँ कुछ और कहती है
न अब कलियाँ चटकती हैं न ग़ुंचे मुस्कुराते हैं
गुलिस्ताँ से हवा-ए-गुलसिताँ कुछ और कहती है
ब-क़द्र-ए-हौसला जीने का अरमाँ क्या करे कोई
ज़माने की हवा ऐ मेहरबाँ कुछ और कहती है
हमें तो मुद्दआ' सिर्फ़ एक ही उस में नज़र आया
कहे सौ बार गर तेरी ज़बाँ कुछ और कहती है
निहाँ है अज़्मत-ए-देरीना की इक दास्ताँ उस में
चमन वालों से ख़ाक-ए-आशियाँ कुछ और कहती है
हक़ीक़त किस में कितनी है किसे अब मो'तबर समझें
ख़िज़ाँ कुछ और बहार-ए-बे-ख़िज़ाँ कुछ और कहती है
बहार-ए-जावेदाँ गुलशन में अब कुछ भी कहे 'तालिब'
क़फ़स वालों से याद-ए-आशियाँ कुछ और कहती है
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