जल्वे का उन के ये है असर कुछ ख़बर नहीं
जल्वे का उन के ये है असर कुछ ख़बर नहीं
मैं कौन हूँ कहाँ हूँ किधर कुछ ख़बर नहीं
सीने में हर तरफ़ नज़र आता है दर्द ही
दिल है कहाँ कहाँ है जिगर कुछ ख़बर नहीं
आँखों में एक रंग उदासी का जम गया
कैसी है शाम कैसी सहर कुछ ख़बर नहीं
अब चारागर तू मुझ से मिरा हाल कुछ न पूछ
है या नहीं है दर्द-ए-जिगर कुछ ख़बर नहीं
हर दम तिरे ख़याल में है महवियत मुझे
होती है कैसे उम्र बसर कुछ ख़बर नहीं
इतना तो जानते हैं कि दिल में हैं ज़लज़ले
क्या कर गई इक उन की नज़र कुछ ख़बर नहीं
रहता है बंदिशों में वो हर वक़्त ज़ीस्त की
अपनी क़ज़ा की रखता बशर कुछ ख़बर नहीं
अब इतनी महवियत है हमें तेरे इश्क़ में
कैसी ख़बर कहाँ की ख़बर कुछ ख़बर नहीं
लाई है अपने साथ जो 'नश्तर' शब-ए-फ़िराक़
इस शाम की कब होगी सहर कुछ ख़बर नहीं
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