झुकते नहीं सर यूँ किसी शमशीर के आगे
झुकते नहीं सर यूँ किसी शमशीर के आगे
मक़्सूद आलम ख़ाँ आलम बरेलवी
MORE BYमक़्सूद आलम ख़ाँ आलम बरेलवी
झुकते नहीं सर यूँ किसी शमशीर के आगे
बस चलता नहीं कोई भी तक़दीर के आगे
उस का कोई बंधन तो न था राह-ए-वफ़ा में
ख़ुद पाँव मिरे आ गए ज़ंजीर के आगे
उफ़ तेरी नज़र भी तो क़यामत की नज़र थी
दिल कैसे बचाता कोई उस तीर के आगे
घबराता है तन्हाई की रातों से मिरा दिल
रोता हूँ मैं घंटों तेरी तस्वीर के आगे
आ जाएगा उल्फ़त का यक़ीं उन को यक़ीनन
रख दूँगा किसी रोज़ जिगर चीर के आगे
बदला न मेरा रंज-ओ-अलम हाए रे क़िस्मत
दिल और मचल जाता है दिल-गीर के आगे
माना कि तिरी ज़िंदगी आसाँ नहीं 'आलम'
मुश्किल भी तो मुश्किल नहीं तदबीर के आगे
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