जितने क़िस्से हैं मिरे शिकवा-ए-बेदाद हैं सब
जितने क़िस्से हैं मिरे शिकवा-ए-बेदाद हैं सब
ज़िक्र काहे को हैं अफ़साना-ए-फ़र्याद हैं सब
लिल्लाह अल-हम्द कि मैं रंज-फ़रामोश नहीं
जो सितम तुम ने किए हैं वो मुझे याद हैं सब
जिस तरफ़ देखिए दो तीन फड़कते हैं असीर
क्यूँ न सय्याद ख़ुशी हो क़फ़स आबाद हैं सब
ख़्वास्त-गारान-ए-क़ज़ा हैं तह-ए-ख़ंजर बे-ताब
शाएक़-ए-हुस्न-ए-इजाज़त तिरे जल्लाद हैं सब
उन को तकलीफ़-रिसानी की अबस है ता'लीम
नाला-ओ-आह-ओ-फ़ुग़ाँ तेरे सितम-ज़ाद हैं सब
फूट जाए जो फफोला तो रवाँ हों आँसू
अश्क ऐ जान-ए-जहाँ आब्ला-बुनियाद हैं सब
तौक़-ओ-ज़ंजीर के ख़्वाहाँ हैं तिरे दीवाने
रोज़-ओ-शब मुंतज़िर-ए-ख़िदमत-ए-हद्दाद हैं सब
कुफ्र-ओ-इस्लाम बराबर हैं ज़मान-ए-रहमत
हुस्न जितने हैं ज़माने में ख़ुदा-दाद हैं सब
ता-कुजा काविश-ए-सय्याद अजल है नज़दीक
एक दिन इस क़फ़स-ए-जिस्म से आज़ाद हैं सब
अब ये हालत है कि दुश्मन भी दुआ देते हैं
दस्त-बर्दाश्ता मेरे लिए जल्लाद हैं सब
ना-तवाँ वो हूँ कि हर बाल वबाल-ए-जाँ है
ज़ोफ़ से मू-ए-बदन ख़ंजर-ए-फ़ौलाद हैं सब
सख़्त जाँ हूँ मिरी तस्कीं को बता दे क़ातिल
किस क़दर घर में तिरे ख़ंजर-ए-फ़ौलाद हैं सब
मैं हुआ क़ैस हुआ वामिक़-ए-बेचारा हुआ
दिल-गिरफ़्तार हैं सब आशिक़-ए-नाशाद हैं सब
आशिक़-ओ-वहशी-ओ-दीवाना-ओ-रुसवा कह के
जिस तरह चाहे बुला तेरे ही इरशाद हैं सब
आमद आमद है मगर मेरे सही क़ामत की
बाग़ में हर तरफ़ इस्तादा जो शमशाद हैं सब
एक से एक निराला है ज़माने में हसीं
जलवा-ए-नूर-ए-इलाही ये परी-ज़ाद हैं सब
तेरी आँखों के जो मज़मून लिखे हैं मैं ने
हर्फ़ जितने नज़र आते हैं मुझे साद हैं सब
दूर तक तेरी गुज़रगाह-ए-जफ़ा है ओ तुर्क
हफ़्त-अफ़्लाक मिरे मस्कन-ए-फ़रियाद हैं सब
अपने अशआ'र का आतिश ने दिया आप जवाब
मो'तरिज़ हो जिए तो क़ाबिल-ए-ईराद हैं सब
रास्त कहता हूँ ये मैं 'नासिख़'-ओ-'सौदा'-ओ-'नसीम'
अपने अंदाज़ में बे-मिस्ल हैं उस्ताद हैं सब
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