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जो अपनी पलकों पे आँसू सजाए रखते हैं

दिलनवाज़ सिद्दीक़ी

जो अपनी पलकों पे आँसू सजाए रखते हैं

दिलनवाज़ सिद्दीक़ी

MORE BYदिलनवाज़ सिद्दीक़ी

    जो अपनी पलकों पे आँसू सजाए रखते हैं

    वो आस्तीनों में ख़ंजर छुपाए रखते हैं

    जिन्हें सिखाया था तहज़ीब का सबक़ हम ने

    हमारे बारे में संगीन राय रखते हैं

    रिदा-ए-सब्र में लिपटे हुए ये संत फ़क़ीर

    समस्याओं का उत्तम उपाए रखते हैं

    वफ़ा के ख़ून की सुर्ख़ी के साथ चेहरे पर

    हम उन की याद के ज़ेवर सजाए रखते हैं

    मरीज़-रंगों में अपने ये बर्ग-हा-ए-ख़िज़ाँ

    हयात-ए-नौ का तबस्सुम छुपाए रखते हैं

    ये हुस्न-ए-फ़िक्र है अरबाब-ए-नज़र का कि सदा

    सुकूत में भी इशारे किनाए रखते हैं

    ग़ुरूर से तिरी गर्दन तनी हुई क्यों है

    कि सर तो काँधों पे हम भी उठाए रखते हैं

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