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जो दूसरों के इशारों पे चलते रहते हैं

शकील इबन-ए-शरफ़

जो दूसरों के इशारों पे चलते रहते हैं

शकील इबन-ए-शरफ़

MORE BYशकील इबन-ए-शरफ़

    जो दूसरों के इशारों पे चलते रहते हैं

    वो 'उम्र भर कफ़-ए-अफ़सोस मलते रहते हैं

    जो तुंद-ओ-तेज़ हवाओं में जलते रहते हैं

    वही चराग़ अँधेरों को खलते रहते हैं

    ये जानता हूँ मिरी दस्तरस में कुछ भी नहीं

    मगर वो ख़्वाब जो आँखों में पलते रहते हैं

    तुम अपनी छत पे सर-ए-शाम यूँ आया करो

    तमाम रात सितारे मचलते रहते हैं

    किसी की आँखों में होती है ज़िंदगी की चमक

    किसी की आँख से चश्मे उबलते रहते हैं

    ख़याल करते नहीं हम कभी मसाफ़त का

    हुसूल-ए-मंज़िल-ए-मक़्सद में चलते रहते हैं

    लबों पे अपने तबस्सुम तो मैं सजा लूँगा

    मगर जो आँखों से आँसू निकलते रहते हैं

    ज़रा बताओ तो किस किस को मात दोगे 'शकील'

    बिसात-ए-वक़्त पे मोहरे बदलते रहते हैं

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