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जो तेरी राहगुज़र में चुभा था ख़ार मुझे

शारिक़ बल्यावी

जो तेरी राहगुज़र में चुभा था ख़ार मुझे

शारिक़ बल्यावी

MORE BYशारिक़ बल्यावी

    रोचक तथ्य

    मासिक 'इंशा ' -कोलकाता, मार्च -अप्रैल 2008

    जो तेरी राहगुज़र में चुभा था ख़ार मुझे

    सफ़र की याद दिलाता है बार बार मुझे

    वो ख़ुश-अदा है बहुत लोग मुझ से कहते हैं

    मगर ये बात गुज़रती है नागवार मुझे

    तमाम-उम्र गुज़र जाए तुझ तक आने में

    इतनी दूर से ज़िंदगी पुकार मुझे

    ज़माना बीत गया महव-ए-रक़्स चाक पे हूँ

    कोई भी शक्ल हो कूज़ा-गर उतार मुझे

    मैं शौक़-ए-दीद लिए गया था कूचे में

    कि छोड़ता ही नहीं अब तिरा दयार मुझे

    मैं अपने कू-ए-तमन्ना में मुंतज़िर ही रहा

    तलाश करती रही दश्त में बहार मुझे

    जफ़ा हो या कि वफ़ा मैं असीर-ए-दर्द रहा

    किसी भी तौर आया कभी क़रार मुझे

    जब उस ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-वफ़ा 'तारिक़'

    तो फिर ये किस लिए उस का है इंतिज़ार मुझे

    स्रोत :
    • पुस्तक : Alami Urdu Adab, Jild 27 (पृष्ठ 155 (e)156 )
    • रचनाकार : Nand Kishor Vikram
    • प्रकाशन : Publishers and Advertisers, Krishn Nagar, Delhi, (October 2008)
    • संस्करण : October 2008

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