जुनून-ए-शौक़-ए-मोहब्बत है क्या किया जाए
जुनून-ए-शौक़-ए-मोहब्बत है क्या किया जाए
यही तो रंग-ए-तबी'अत है क्या किया जाए
जो अपने हाथ में पत्थर उठाए फिरते हैं
उन्हीं से मुझ को 'अक़ीदत है क्या किया जाए
ज़माना मेरे फ़साने से ख़ूब वाक़िफ़ है
किसी को फिर भी शिकायत है क्या किया जाए
कोई ये जा के बता दे मिरे रक़ीबों से
मुझे तो उन से भी उल्फ़त है क्या किया जाए
मैं जब भी मिलता हूँ दिल मेरा साफ़ होता है
उधर तो शो'ला-ए-नफ़रत है क्या किया जाए
है दिल में बुग़ज़-ओ-'इनाद-ओ-हसद रिया-कारी
उन्हीं की सिर्फ़ ये 'आदत है क्या किया जाए
समझ सके न वो अब तक हवाओं के रुख़ को
मिज़ाज-ए-अहल-ए-सियासत है क्या किया जाए
ग़सब जो करता है अब भी हुक़ूक़ औरों के
सुना है साहब-ए-सरवत है क्या किया जाए
हैं बुत छुपाए हुए अपनी आस्तीनों में
ज़बाँ पे कलमा-ए-वहदत है क्या किया जाए
उसी को आज भी 'बिस्मिल' नवाज़ता है जहाँ
जो नंग-ए-फ़हम-ओ-फ़रासत है क्या किया जाए
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