काफ़िर को बाद में ही मुसलमान कीजिए
काफ़िर को बाद में ही मुसलमान कीजिए
पहले तो आदमी ही को इंसान कीजिए
आबाद अब तो ये दिल-ए-वीरान कीजिए
मेहमान कर के ख़ातिर-ए-मेहमान कीजिए
उस बुत से बात कीजिए न सौम-ओ-सलात की
कुछ तो ख़याल दुश्मन-ए-ईमान कीजिए
मेह्र-ओ-वफ़ा के बाब में दीजे न दख़्ल आप
मुझ पर ये मेहरबानी मेहरबान कीजिए
मेरी सज़ा जज़ा ऐ फ़रिश्तो न तोलना
पहले ज़रा मरम्मत-ए-मीज़ान कीजिए
घबराईए न देख के सीने का ज़ेर-ओ-बम
मालूम पहले बाइस-ए-हैजान कीजिए
देखो न माह-रुख़ को कहीं बद-नज़र लगे
कुछ एहतिमाम हाफ़िज़-ए-क़ुरआन कीजिए
बैठा रहूँ हमेशा यूँही आप के हुज़ूर
मुझ पर मिरे हुज़ूर ये एहसान कीजिए
आए तो चार दिन को मगर साल हो गए
'शाहिद' यहाँ से कूच का सामान कीजिए
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