काश आए सदा 'इश्क़ की तशहीर से पहले
काश आए सदा 'इश्क़ की तशहीर से पहले
ये ख़्वाब बिखर जाते हैं ता'बीर से पहले
कुछ दर्द सदा के लिए होते हैं मुसल्लत
कुछ जानें निकल जाती हैं ज़ंजीर से पहले
ये क़ैद-ओ-क़फ़स इन के ततब्बो’ में बने हैं
ज़िंदाँ थे कहाँ ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से पहले
जब टूट के बिखरे तो ये इक बात समझ आई
तस्ख़ीर हुआ करते हैं तस्ख़ीर से पहले
आए तो कोई कैसे मुक़ाबिल कि वो नज़रें
सीने में उतर जाती हैं शमशीर से पहले
कमरे की दिवारों पे निशाँ देख रहे हो
वहशत थी यहाँ आप की तस्वीर से पहले
क्या जान सको तुम कि है लुट जाना बला क्या
पूछो कभी हारे हुए रह-गीर से पहले
लिखता था मैं पलकों पे कहानी ग़म-ए-दिल की
अश्कों का हुनर आता था तहरीर से पहले
जब पहले उतारा ही गया हो न ये 'सादिक़'
फिर कैसे ग़ज़ल-ख़्वाँ हो भला 'मीर' से पहले
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