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कब जुदा है मुझ से दिलबर कब मैं दिलबर से जुदा

नवाब नजीर अल दोला

कब जुदा है मुझ से दिलबर कब मैं दिलबर से जुदा

नवाब नजीर अल दोला

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    कब जुदा है मुझ से दिलबर कब मैं दिलबर से जुदा

    हो गौहर आब से और आब गौहर से जुदा

    रूह तन से जाँ बदन से होश है सर से जुदा

    क्या कशाकश में फँसा हूँ जब से दिलबर से जुदा

    हो गई बर्बाद मिट्टी मिल गया मैं ख़ाक में

    जब हुआ नक़्श-ए-क़दम की तरह उस दर से जुदा

    हश्र में किस की गरेबाँ-गीर होगी ख़ुदा

    क्यों हुई ख़ाक अपनी दामान-e-सितमगर से जुदा

    क्या ही तालेअ' का सितारा है नहूसत में मिरा

    हो गया वो माह जैसे मुझ बद-अख़तर से जुदा

    लख़्त-ए-दिल आगे चला पीछे रवाँ है फ़ौज-ए-अश्क

    हो नहीं सकता ये लश्कर अपने अफ़सर से जुदा

    जागने से ग़ैर के हमदम कहें क्या रात भर

    हम को वो तरसे जुदा और उन को हम तरसे जुदा

    जोश पर है चश्म-ए-तर वहशत ले जा सोए दश्त

    मौसम-ए-बारिश में हम हों किस तरह घर से जुदा

    कब बचे जब बहर-ए-शोर-अफ़ज़ा में इक तिफ़्ल-ए-सग़ीर

    हो तलातुम में कहीं दस्त-ए-शनावर से जुदा

    पाए वो क़अर-ए-जहन्नुम में जगह अपनी वहाँ

    याँ हो जिस का हाथ दामान-ए-पयम्बर से जुदा

    गरचे है कम-फ़ुर्सती 'दौला' ग़ज़ल कह और भी

    इन दिनों अज़-बस है तू शोख़-ए-सितमगर से जुदा

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