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कब कहा हम ने इसे बार-ए-गराँ जानते हैं

इम्तियाज़ नदीम

कब कहा हम ने इसे बार-ए-गराँ जानते हैं

इम्तियाज़ नदीम

MORE BYइम्तियाज़ नदीम

    कब कहा हम ने इसे बार-ए-गराँ जानते हैं

    हम तो ग़म को तिरे सरमाया-ए-जाँ जानते हैं

    अब्र ज़ुल्फ़ों को तो आरिज़ को समझते हैं गुलाब

    तीर नज़रों को तो अबरू को कमाँ जानते हैं

    हैं वही अस्ल में मीरास-ए-अदब के वारिस

    'मीर'-ओ-'ग़ालिब' का जो अंदाज़-ए-बयाँ जानते हैं

    वो है मेरे लिए आग़ाज़-ए-सफ़र की सूरत

    जिस को अरबाब-ए-ख़िरद अपना मकाँ जानते हैं

    तिश्ना-लब रह गए साहिल पे जाने कितने

    किस के काम आया है ये आब-ए-रवाँ जानते हैं

    अज़्मत-ए-अर्ज़-ए-वतन क्या है ये हम से पूछो

    इस के ज़र्रों को भी हम काहकशाँ जानते हैं

    रोज़ ढलता है यहाँ जाम में इंसाँ का लहू

    रोज़ हक़-गोई पे कटती है ज़बाँ जानते हैं

    तंगी-ए-ज़ीस्त पे घबरा के जो मर जाते हैं

    रहमत-ए-रब्ब-ए-दो-आलम वो कहाँ जानते हैं

    हम से पूछे कोई नेज़े की अनी है क्या चीज़

    संग क्या होता है आईना-गराँ जानते हैं

    ख़ामी-ए-फ़िक्र है या ज़ो'म-ए-बसीरत है नदीम

    नर्म गीतों को भी कुछ लोग फ़ुग़ाँ जानते हैं

    स्रोत :
    • पुस्तक : سراب دشت امکاں(غزلیات) (पृष्ठ 71)
    • रचनाकार : ڈاکٹر امتیاز ندیم
    • प्रकाशन : مکتبہ نعیمہ صدر بازار(مئو ناتھ بھنجن) (2020)

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