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कभी मकाँ की तरफ़ है कभी मकीं की तरफ़

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कभी मकाँ की तरफ़ है कभी मकीं की तरफ़

ग़ुलाम हुसैन साजिद

MORE BYग़ुलाम हुसैन साजिद

    रोचक तथ्य

    14th May, 2004, Lahore

    कभी मकाँ की तरफ़ है कभी मकीं की तरफ़

    किसी का रुख़ है अज़ल से मिरी ज़मीं की तरफ़

    चराग़-ए-लाला है रौशन सुर्ख़ रू-ए-हिना

    फ़ज़ा-ए-सेहन-ए-गुलिस्ताँ है यासमीं की तरफ़

    मिरे बदन ने भी इस फ़ैसले पे साद किया

    कि दाग़-ए-सज्दा रहेगा फ़क़त जबीं की तरफ़

    तुयूर-ए-ख़्वाब हों आईने हों सितारे हों

    रवाँ-दवाँ हैं सभी अर्श-ए-नीलमीं की तरफ़

    हुआ है कोई अगर फ़ैसला मिरे हक़ में

    कभी मैं हाँ की तरफ़ था कभी नहीं की तरफ़

    बदल पाऊँगा मैं आसमाँ बदलने से

    मिरा झुकाव रहेगा उसी हसीं की तरफ़

    दयार-ए-दिल का अंधेरा अगर छटा 'साजिद'

    तो ध्यान जाएगा उस शम-ए-अव्वलीं की तरफ़

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