कहीं भी जा के जो रहते तो हम कहाँ रहते
कहीं भी जा के जो रहते तो हम कहाँ रहते
वही ज़मीं पे वही ज़ेर-ए-आसमाँ रहते
कोई जगह न मिली तेरे वहम से ख़ाली
ये तेरे दिल-शिकन आराम से जहाँ रहते
ये और बात कि ख़ुश आ गई तिरी सोहबत
हम अपने फ़ैज़-ए-तबीअत से भी जवाँ रहते
सनद जो क़ाबिलियत की हमें बहम आती
मुक़ाबले के कई और इम्तिहाँ रहते
न दी ज़माने ने मोहलत वगर्ना हम वो थे
हमेशा अहल-ए-मोहब्बत के दरमियाँ रहते
क़बाएँ उन से बना ली हैं ना-ख़ुदाओं ने
सफ़र ब-ख़ैर था सालिम जो बादबाँ रहते
पहाड़ रास्ता 'शौकत' ज़रूर दे देते
न जज़्ब झरने जो होते रवाँ-दवाँ रहते
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