कैसा हँसता बोलता है हर किसी से आदमी
कैसा हँसता बोलता है हर किसी से आदमी
गोबिन्द राम बिस्मिल साहनी
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कैसा हँसता बोलता है हर किसी से आदमी
जैसे करता हो मोहब्बत आदमी से आदमी
सीख लेता है अगर मरना ख़ुशी से आदमी
झूम उठता है ख़ुमार-ए-ज़िंदगी से आदमी
है रवाँ हुस्न-ओ-मोहब्बत का अज़ल से सिलसिला
आदमी से आशिक़ी है आशिक़ी से आदमी
हैं जुनूँ की राह में हर गाम पर आसानियाँ
मुश्किलें करता है पैदा आगही से आदमी
अज़्मतें जैसी मोहब्बत करने वालों को मिलीं
पा नहीं सकता कभी वो बे-हिसी से आदमी
इस का मक़्सद है फ़क़त आसूदगी-ए-जान-ओ-दिल
खा कमा सकता नहीं है शायरी से आदमी
मौत का तो नाम यूँ ही मुफ़्त में बदनाम है
अस्ल में डरता है 'बिस्मिल' ज़िंदगी से आदमी
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