कलियाँ जहाँ उदास हों गुल में फबन न हो
कलियाँ जहाँ उदास हों गुल में फबन न हो
या-रब कहीं भी ऐसी बहार-ए-चमन न हो
होते नहीं हैं मारका-ए-इश्क़ सर कभी
दिल में अगर जुनूँ न हो सर पर कफ़न न हो
इक दिन ज़रूर आएगी फिर रुत बहार की
ख़ुश मेरी बेबसी पे ऐ चर्ख़-ए-कुहन न हो
शहर-ए-सितमगराँ है ये मुमकिन नहीं यहाँ
अहल-ए-वफ़ा से ज़ीनत-ए-दार-ओ-रसन न हो
कैसे वो क़ौम होगी भला कामयाब आज
दीदार जिस का दिल न हो दिल में लगन न हो
बे फ़ैज़ हर लिबास है ऐ दुख़्तरान-ए-क़ौम
पैराहन-ए-हया ही अगर ज़ेब-ए-तन न हो
बज़्म-ए-तरब सजाइए या ग़म की अंजुमन
पामाल बस रिवायत-ए-गंग-ओ-जमन न हो
इस नस्ल-ए-नौ से कैसे हो उम्मीद-ए-बेहतरी
जिस का अमल न ख़ूब हो बेहतर चलन न हो
अफ़्कार की उड़ान में आ जाती है कमी
क़ाएम अगर तसलसुल-ए-मश्क़-ए-सुख़न न हो
'अहसन' न होना गर्दिश-ए-हालात से उदास
है कौन जिस की ज़ीस्त में रंज-ओ-मेहन न हो
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