कमी क्या है जल्वा-ए-यार की वो कहाँ नहीं वो किधर नहीं
कमी क्या है जल्वा-ए-यार की वो कहाँ नहीं वो किधर नहीं
नियाज़ गुलबर्गवी
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कमी क्या है जल्वा-ए-यार की वो कहाँ नहीं वो किधर नहीं
या नहीं है ज़ौक़-ए-नज़र यहाँ या जहाँ में अहल-ए-नज़र नहीं
ये भी सच कि तुम मिरे हो चुके ये भी सच कि दर्द-ए-जिगर नहीं
ग़म-ए-इश्क़ गो नहीं सामने ग़म-ए-ज़िंदगी से मफ़र नहीं
ये अजीब है तिरा इम्तिहाँ कि मुझी पे गिरती हैं बिजलियाँ
तिरी बारगाह-ए-जलाल में मिरी चश्म-ए-तर का गुज़र नहीं
तू इधर तो आ तू नज़र तो आ मिरी चश्म-ए-शौक़ को आज़मा
मिरे हौसले तो बुलंद हैं गो नज़र में ताब-ए-नज़र नहीं
मैं रहीन-ए-दर्द-ओ-सितम इधर तू बईद-ए-लुत्फ़-ओ-करम उधर
जो भुला सका न कभी तुझे ये सितम है उस पे नज़र नहीं
न वो कुश्तगान-ए-सनम रहे न वो महरमान-ए-हरम रहे
कहाँ छुप गए तिरे आश्ना कोई आज गर्म-ए-सफ़र नहीं
न वो कारवाँ न वो रहगुज़र न वो आस्ताँ न वो संग-ए-दर
ये पता नहीं कहाँ आ गए कहाँ जा रहे हैं ख़बर नहीं
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