कसरत-ए-तमाशा को वहदत-आश्ना पाया
कसरत-ए-तमाशा को वहदत-आश्ना पाया
हस्ती-ए-फ़ना में भी जल्वा-ए-बक़ा पाया
क्या हुआ ख़िज़र ने जो चश्मा-ए-बक़ा पाया
जीने पर मरे तो क्या जीने का मज़ा पाया
जज़्बा-ए-नज़ारा है आँख की ख़ता क्या है
का'बे में सनम देखा दैर में ख़ुदा पाया
ख़ूँ हुआ तमन्ना का ज़ुल्म सर-बसर देखा
दिल को इम्तिहाँ में भी सब्र-आज़मा पाया
हो गया है कसरत में राज़ आश्कार उस का
शान हर जगह देखी जल्वा जा-ब-जा पाया
दर्द से हुईं पैदा दिल में सौ तमन्नाएँ
ज़िंदगी-ए-लज़्ज़त को दर्द-आश्ना पाया
पर्दा-दर ख़मोशी है बे-हिजाब आँखें हैं
राज़-ए-बज़्म-ए-दुश्मन का हम ने कुछ पता पाया
हुस्न की कशिश ही में रहबरी की क़ुव्वत थी
गुमरहान-ए-उल्फ़त ने राह का पता पाया
राज़ हो गया इफ़्शा उठ गया हिजाब आख़िर
आँख से छुपे तो क्या दिल में ज़ाहिरा पाया
याद आ गया दिल को फिर अलस्त का पैमाँ
फिर जबीं को का'बा से सज्दा-आश्ना पाया
इश्क़ क्या किया हम ने सख़्तियाँ सदा झेलीं
दिल को हर मुसीबत में जुरअत-आज़मा पाया
मो'जिज़ा अदब का है 'शाद' हर कलाम अपना
नुक्ता-रस तबीअ'त ने नुत्क़ क्या रसा पाया
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