ख़ाकसारी से तू इक्सीर से आगे बढ़ जा
ख़ाकसारी से तू इक्सीर से आगे बढ़ जा
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
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ख़ाकसारी से तू इक्सीर से आगे बढ़ जा
वो ज़मीं बन कि फ़लक-ए-पीर से आगे बढ़ जा
उम्र भर जिस से गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत न छुटें
ज़ुल्फ़-ए-जानाँ तू ही ज़ंजीर से आगे बढ़ जा
दर्द देखे जो तुझे देख के सर को पटके
ग़म-ओ-अंदोह की तस्वीर से आगे बढ़ जा
ऐ सियह-बख़्ती तिरी ख़ू है अगर बढ़ने की
यार की ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से आगे बढ़ जा
नाला-ए-नीम-शबी को है मिरी ये ताकीद
काट में बुर्रिश-ए-शमशीर से आगे बढ़ जा
मिज़ा-ए-यार का अबरू से इशारा है यही
तुझ में ताक़त है अगर तीर से आगे बढ़ जा
तू ही ऐ आह-ए-रसा अर्श-ए-मुअ'ल्ला पे पहुँच
तू ही अब नाला-ए-शबगीर से आगे बढ़ जा
पाँव पीछे न हटा मंज़िल-ए-मक़्सूद पकड़
जो मिले तू उसी रहगीर से आगे बढ़ जा
तुझ को ऐ गर्दिश-ए-कौनैन मिरे सर की क़सम
तू मिरी गर्दिश-ए-तक़दीर से आगे बढ़ जा
है नज़र-बाज़ अगर कर तू नज़ारा उस का
यार के हुस्न की तनवीर से आगे बढ़ जा
ज़िंदगी चाहे तो हो जा तू अज़ीज़-ए-हर-दिल
ज़ाइक़े में शकर-ओ-शीर से आगे बढ़ जा
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