ख़ला में पेश-रफ़्ती की तरफ़ पहला इशारा है
ख़ला में पेश-रफ़्ती की तरफ़ पहला इशारा है
किरन का दाग़ हम ने अपने दामन पर उतारा है
रुख़-ए-‘आलम को पेश-ओ-पस न कर दें ये जुनूँ-पेशा
ख़ुदा ने आदमी को वक़्फ़े वक़्फ़े से पुकारा है
जहान-ए-हैरत-ओ-दरयाफ़्त हम ही से तो रौशन है
ये सय्यारों पे नक़्श-ए-आबला-पाई हमारा है
ये रफ़्तार-ए-नुमू-याबी का धीमा-पन ग़नीमत है
तरक़्क़ी का न होना भी तरक़्क़ी का इशारा है
जो उस्लूब-ए-सुख़न के नाम पर बे-कार जाते हैं
उन्ही के नाम पर शहर-ए-सुख़न में इक इदारा है
वुजूद-ए-सिफ़्र से तक़्वीम-ए-दो-'आलम नहीं बनती
हुदूद-ए-रौशनी के पार भी रौशन सितारा है
लताफ़त का ये पहलू शा'इरी का हुस्न है 'तौहीद'
गरेबान-ए-जहान-ए-ख़ुश्क-ओ-तर भी इस्ति'आरा है
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