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ख़ंदक़-ए-दहर में उतर तो सकूँ

अहमद सोज़

ख़ंदक़-ए-दहर में उतर तो सकूँ

अहमद सोज़

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    ख़ंदक़-ए-दहर में उतर तो सकूँ

    जो अब तक हुआ वो कर तो सकूँ

    गर्द-आलूद आमद-ओ-शुद है

    चाहतों में गुज़र बसर तो सकूँ

    चल रही है हवा-ए-तुंद-ओ-तेज़

    तल्ख़ियों को ज़रा शकर तो सकूँ

    सारी की सारी ने'मतें हैं उधर

    कुछ उधर को ज़रा इधर तो सकूँ

    धूप बरसा रही है अंगारे

    शहर-ए-बे-साया को शजर तो सकूँ

    तेरी दुनिया में सरहदें हैं बहुत

    चाहूँ जिस सम्त से गुज़र तो सकूँ

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