खंडर में खोए ख़ज़ाने तलाश करता है
खंडर में खोए ख़ज़ाने तलाश करता है
सैफ़ुर्रहमान अब्बाद ग़ाज़ीपूरी
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खंडर में खोए ख़ज़ाने तलाश करता है
वो शख़्स गुज़रे ज़माने तलाश करता है
जदीदियत के सभी तौर उस ने अपनाए
मगर वो दोस्त पुराने तलाश करता है
उधर वो आए इधर नम हुईं मिरी पलकें
कि अश्क भी तो बहाने तलाश करता है
तुम्हारे घर में परिंदे को हक़ है आने का
वो अपने रिज़्क़ के दाने तलाश करता है
वो सोच कर के छुआ होगा उन को पुरखों ने
वो काग़ज़ात पुराने तलाश करता है
वो अपने अह्द का इक लम्स चाटने के लिए
पुरानी तर्ज़ के गाने तलाश करता है
करेगा मुझ पे वो तन्क़ीद जाने क्या 'अब्बाद'
जो मेरे सारे फ़साने तलाश करता है
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