ख़याल-ओ-फ़िक्र जहाँ ज़ाविए बदलते हैं
ख़याल-ओ-फ़िक्र जहाँ ज़ाविए बदलते हैं
वहीं से नित-नए उस्लूब चल निकलते हैं
वो रात को पए गुल-गश्त जब निकलते हैं
फ़लक पे चाँद-सितारों के दिल मचलते हैं
मिरे कलाम में मफ्रूज़ा-ओ-क़यास नहीं
ये तजरबात हैं जो शे'र बन के ढलते हैं
रुख़-ए-हयात को हर ज़ाविए से देखा है
मुशाहिदात के क़ालिब में शे'र ढलते हैं
क़दम क़दम पे हया-सोज़ियों का आलम है
सँवर सँवर के निगारान-ए-शहर चलते हैं
तुम्हारे ग़म से इबारत है ज़िंदगी मेरी
तुम्हारे याद के दिल में चराग़ चलते हैं
हैं कामरान वही लोग आज दुनिया में
जो वक़्त और ज़माने के साथ चलते हैं
गुदाज़-ए-क़ल्ब भी होता है कुछ उन्हीं को नसीब
जो दर्द-मंद हैं उन के ही दिल पिघलते हैं
रह-ए-हयात में ऐसा भी है मक़ाम कोई
जहाँ जुनून-ओ-ख़िरद साथ साथ चलते हैं
जुदा है रंग-ए-सुख़न 'ताज' हर सुख़न-वर का
बे-ए'तिबार-ए-नज़र फ़िक्र-ओ-फ़न बदलते हैं
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