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ख़ुलूस-ओ-मेहर से लबरेज़ हमदम अपना था

शाैकत वास्ती

ख़ुलूस-ओ-मेहर से लबरेज़ हमदम अपना था

शाैकत वास्ती

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    ख़ुलूस-ओ-मेहर से लबरेज़ हमदम अपना था

    कि बेशतर वो हमारा था कम-कम अपना था

    किया जो तज्ज़िया निकला जाने किस किस का

    हमेशा जिस को ये समझा किए ग़म अपना था

    था तुम्हारी मोहब्बत में क़ाएदा कोई

    कारोबार-ए-वफ़ा ही मुनज़्ज़म अपना था

    रसाई क्यों हुई ता-ब-कू-ए-यार अगर

    नियत ब-ख़ैर इरादा मुसम्मम अपना था

    किसी की ज़ात गुमराह कर सकी हम को

    कि अपनी ज़ात पे ईमान मोहकम अपना था

    ख़ुदा को जाना है इंसान को पहचाना

    अगरचे फ़र्ज़ यही इक मुक़द्दम अपना था

    हमारी सल्तनत-ए-इश्क़ की हुदूद पूछ

    जो रास्त क़द था कि गेसू-ए-पुर-ख़म अपना था

    कुछ इस तरह हुई तक़्सीम बाग़-ए-हस्ती की

    तुम्हारा ख़ंदा-ए-गुल अश्क-ए-शबनम अपना था

    वो शख़्स ही मिरी पहचान बन गया 'शौकत'

    कभी जो दोस्त था अपना महरम अपना था

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