ख़्वाब-ए-ख़ुश कहने ही को अपना था अपना कुछ न था
ख़्वाब-ए-ख़ुश कहने ही को अपना था अपना कुछ न था
हर्फ़-ए-आज़ादी सुना था हम ने समझा कुछ न था
कौन कहता है कि दुनिया में हमारा कुछ न था
जब तक अपने फ़र्ज़ का एहसास था क्या कुछ न था
हाथ ख़ाली अपनी मंज़िल से चला सू-ए-अदम
ऐ मुसाफ़िर कुछ तिरे क़ब्ज़े में था या कुछ न था
बात कहने की नहीं लेकिन हक़ीक़त है यही
मेरी हस्ती से जो सब कुछ है वो तन्हा कुछ न था
उन की इक करवट पे हो जाती है दुनिया मुज़्तरिब
मैं तड़पता था मगर मेरा तड़पना कुछ न था
पुर-सुकूँ थी मेरे दिल की तरह मस्जिद की फ़ज़ा
कितने फ़ित्ने आज उठे हैं कल ये झगड़ा कुछ न था
दामन-ए-दौलत था जब तक दामन-ए-अग़्यार में
आप भी थे हम भी थे ये मेरा तेरा कुछ न था
रहम के क़ाबिल है उस का आलम-ए-बेचारगी
कह दिया जिस ने बहुत कुछ और सोचा कुछ न था
हम को किस किस ने न सिखलाए तरीक़े सब्र के
अपने ऊपर वक़्त जब आया तरीक़ा कुछ न था
ए'तिराफ़-ए-मासियत थी मय-कशी के साथ साथ
मय-कदे में नाज़-ए-तस्बीह-ओ-मुसल्ला कुछ न था
सौ इरादे थे अमल के हौसले को क्या करें
अब तो कहने के लिए उन का इरादा कुछ न था
फ़ितरत-ए-इंसाँ पे जब तक इश्क़ था परतव-फ़गन
जौहर-ए-इंसानियत को 'नज्म' ख़तरा कुछ न था
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